Wednesday, August 11, 2010

"जीवन जिऐ तो ऐसे जिए कि जिसमे कुछ आस हो,
कृषण की थोरी लीला हो, राम का कुछ बनवाश हो."


मेरे साथ ही ख़त्म नहीं हो जायेगा

सबका संसार

मेरी यात्राओं से ख़त्म नहीं हो जाना है

सबका सफ़र


अगर अधूरी है मेरी कामनाएँ

तो हो सकता है तुममें हो जाएँ पूरी


मेरी अधबनी इमारतों पर

कम से कम परिन्दे लगा लेंगे घोंसले


मैं

अपने आधे-अधूरेपन से आश्वस्त हूँ


कितना सुखद अजूबा हो

कि

मैं अपनी नींद सोऊँ

उसमें ख़्वाब देखे कोई और

कोई तीसरा उठे नींद की ख़ुमारी तोड़ता

ख़्वाबों को याद करने की कोशिश करता।

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