Sunday, March 9, 2014

यूँ मौन बने रहते हो क्यों

हे! युवा शक्ति सखा मेरे 
भविष्य निधि भारतवर्ष कि ॥

नत मस्तक गर्व वहन करते 
यौवन कि ऊर्जा संचित किये ॥

हे ! ओज भरे युवा बता दो 
यूँ मौन बने रहते हो क्यों ?
मिटटी के होते बंटवारों में 
झुलसते भ्रष्टाचारकए ज्वालाओं में 
हृदय विदारक रोदन भारत माँ कि

सुन अनसुनी करते हो क्यों ?

बेला विश्राम कि बीत चली अब
घरा धैर्य कि उपट चुकी अब
जागो अपनी इस चीर निद्रा से 

दुर्बल नहीं, हो क्यों छुपते तुम ?
हे! युवा शक्ति सखा मेरे 
भविष्य निधि भारतवर्ष कि ॥।
मिन्नतें है तुम्हारी नज़रों से 

एक झलक दे मुझे उबार दे ।



होठों कि सुर्ख़ियों से अपनी


हंसी में लपेट मेरा नाम उछाल दे ॥


दिल कि धड़कने हो गयी हैं खामोश सी


अपनी धड़कनों से फिर ताल मिला दे|


ठहर गया हूँ यहाँ सफ़र में आके मैं 


जुल्फों कि छावं दे ये थकन उतार दे ॥



अभी तो रास्ता है काफी तय करना बाकि


दो कदम साथ चल मंज़िल करीब ला दे ॥


बस गुज़ारिश हैं तुम्हारी


इन नज़रों से,

एक झलक दे मुझे उबार दे ||

खुशबु ताज़ी है अभी

पतझड़ों के बाद भी
सुखी नहीं हैं पंखुड़ियां                 

खुशबु ताज़ी है अभी 
एक अरसे बाद भी ॥

                            हवाओं ने धुन
                            छेड़ी बांसुरी की
                            मध्धम मध्धम रहेगी
                            हम रहें न रहें यहाँ 
                            प्रेम गीत यों ही रहेगी
                            एक अरसे बाद भी ॥

याद है,
मुझे तुमने कहा था
वक़्त कि धर में बह जायेगी
सारी याद भी ,
क्यों मगर अब भी
वही ललक, आशा है इंतज़ार की
एक अरसे बाद भी ॥

                                           कई कसमें ,
                                           खायी थी हमने संग रहने की
                                           रेखायें हथेली कि भी कहती
                                           यही थी चाँद कि रौशनी में |
                                           क्या हुआ ऐसा की
                                           सारा मानचित्र बदल गया
                                           भूगोल के दूसरे छोर पे हैं दोनों
                                           पर साथ तेरा छूटा नहीं
                                           एक अरसे बाद भी ॥।

यादों ने परेशां कर रखा है

कल से ही तुम्हारी यादों ने परेशां कर रखा है 
शायद पड़ गयी है गठरी ढीली ,जिसमें
दिल रखा था बांध कर ॥

पथरीली हृदय में बहती नदी भी 
सुखी लगती है अब 
झरना जो बहता था आँखों से 
सूखी सी रहती है आजकल || 

कही हमने ग़ज़ल

नजर  में मेरी  जब आपका अक्स आया ||
दिल  ने तेरे  दिल में समा के कही ग़ज़ल  ||

प्यासे होठो को जब एक बूँद  न मिली ।
अपने आंसू से भिगो , कही हमने ग़ज़ल  ||

नैनों में  जो तैर रहे थे सुन्दर दृश्य , संग उनके |
अन्धेरा छटा तो मालूम पड़ा, ख्वाब थी वो ग़ज़ल  ॥

निश्चल सी पड़ी है, जो  खटिये पे  यहीं ।
सुने जो 'नेश' तेरे होठो से ,जी उठे ये मेरी ग़ज़ल ॥........... अरुणेश नारायण
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