Sunday, March 9, 2014

मिन्नतें है तुम्हारी नज़रों से 

एक झलक दे मुझे उबार दे ।



होठों कि सुर्ख़ियों से अपनी


हंसी में लपेट मेरा नाम उछाल दे ॥


दिल कि धड़कने हो गयी हैं खामोश सी


अपनी धड़कनों से फिर ताल मिला दे|


ठहर गया हूँ यहाँ सफ़र में आके मैं 


जुल्फों कि छावं दे ये थकन उतार दे ॥



अभी तो रास्ता है काफी तय करना बाकि


दो कदम साथ चल मंज़िल करीब ला दे ॥


बस गुज़ारिश हैं तुम्हारी


इन नज़रों से,

एक झलक दे मुझे उबार दे ||

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