Wednesday, September 26, 2012


सोचता हूँ कुछ और,
               होता कुछ और है।
मन  में होता क्षोभ है,
             चित रहता न ठौर है।।

मन  की बातें
             मन में रह जाती हैं ।
आशा की कलियाँ
            खिल नहीं पाती हैं।।

ऐसा लगता है मानो
           मानव  विवश लाचार है ।
उसकी जीवन नैया का
           कोई और कर्णधार है ।।

सारे सृष्टि का
           नियंत्रण कक्ष कहीं और है ।
जहाँ से होते नियंत्रित
           जीव मात्र सर्वत्र हैं ।।
 

Wednesday, September 19, 2012


माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया।आज उस बालक गणेश का जन्मोत्सव है।गणेश चतुर्थी है आज ,यानि  की आज  गणेश जी का हैप्पी बर्थ डे है।तो जाहिर सी बात है की बहुत व्यस्त होगा आज उनका कार्यक्रम ।सभी देवी-देवता उन्हें बधाई देने आये होंगे ,और खली हाथ तो कोए आये नहीं होंगे ,तोहफे लाये होंगे ।फिर वो हमें कैसे याद करेंगे ।इसलिए कुछ अलग शब्दों में उनकी वंदना करनी होगी ,उनका ध्यान इस भक्त पे खीचने के लिए ।

गुड गॉड गणपति गणनायक,
सुन लेना प्रेयर  हमारी  जी,
 है मदर पार्वती,फादर शिव,
है रैट  पे तेरी सवारी जी  ।।

यू आर आलवेज़ ग्रेट गॉड ,
होता पूजन फर्स्ट तुम्हारा है,
स्टार में शाइनिंग होते हो ,
रेनबो में नूर तुम्हारा है ।।

तेरे साइज़ के ऑल गॉड
वर्शिप करते  तुम्हारा है,
एलिफैंट माउथ वाले स्वामी,
संकटहरण  नाम तुम्हारा है ।।

ओल्वेज़ संग रहें रिध्धि-सिध्धि ,
सारे गॉड  तेरे दरबारी जी ,
मदर पार्वती ,फादर शिव ,
ऑन रैट पे तेरी सवारी जी ।।

सर्वप्रथम आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें ।भगवान् गणेश आप सभी के जीवन में सुख-समृधी लायें ।हम अपने प्रतिदिन के जीवन में खुद ही अपने देवी-देवताओं का मजाक बनाते रहते है ।गणेश पूजा के लिए प्रतिमा लेने बाज़ार जाते है तो दुकानदार से पूछते है ,ये गणेश कितने का है .दुकानदार बोलता है की २०० का है ।हम कहते है २०० का?? , क्या बात कर रहे हो भाई, इतना महंगा ..उधर तो ठेले पे सस्ते मिल रहे है ।भाई ठीक-ठीक दम लगाओ तो दो लूँगा...और घर लेजा के ,पूजा प्रतिष्ठा कर के भगवन से अरबों की सम्पति और सुख मांगते है ।भाईसाहब हिंदुस्तान का आदमी बहुत ही ज्यादा समझदार होता है ,'नहाये शेम्पू से पर जाये टेम्पू से'..
                   
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वकार्येशु सर्वदा ।।

Monday, September 17, 2012


आ जाओ पास मेरे की
नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है।

आज तुमसे परे आ कितना व्यग्र है मन
लौट आओ प्राण! पास मेरे
प्रथम एहसास की सौगंध
प्रीत का बचपन निमंत्रण दे रहा है ।।

दूर रहती है रात को भी चाँद से चांदनी कभी ?
फुल से खुशबु , नींद से नयन कभी ?
लौट आओ हंसिनी !पास मेरे
'नेश' का समर्पण निमंत्रण दे रहा है ।।

पलकों में समाया है सुरमई चेहरा तेरा,
हो ना जाए आँख से ओझल नींद की बदलियाँ,
लौट आओ प्रिये ! पास मेरे ,
यह अकेलापन निमंत्रण दे रहा है ।।

आ जाओ पास मेरे की
नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है।


Saturday, September 15, 2012


अच्छी कविता ना हो तो हम माफ़ी चाहते हैं ,बढ़ी हुए कीमते सुनकर तबियत स्ट्राईक पे है ।और इस महंगाई में यही इतना जुगाड़ हो पाया है ।आगे अगर महंगाई मैया की थोरी दया होगी तो, हम भी सुकून में होंगे और हमारी कविता भी ।धन्यवाद

आम आदमी की जेब फिर से कट गयी
पेट काट-काटकर की गयी बचत को दीमक चट गयी ।
डीजल और गैस की कीमतों ने फिर हडकंप मचाई है,
बहु ने अपने ससुराल में फिर से आग लगायी  है

(एक सुबह बढ़ी हुयी कीमतों के साथ शर्मा जी की सुबह हुयी , बड़े बेदम सी हुयी जान में उन्होंने याद आई की  कल रात तो खुद का चेहरा ही देख सोये थे ।पर इससे महंगाई का क्या सम्बन्ध ।खैर !)

हाँ , तो महंगाई से निपटने का कुछ जुगार सोच रहे थे
कोलगेट के बदले नीम के दातुन पर विचार कर रहे थे
दो दिनों से ठीक से नींद की गोद में सोये नहीं थे
कैसा होगा बजट गृहस्ती का इसी सोच में खोये हुए थे ।
महंगाई का सुबह से रटते -रटते जाप
न जाने कब लग गयी हमारी आँख ।

' आग लग गयी ........ आग लग गयी !
ऐसी आ रही थी आवाजें चारो तरफ  से
हर तरफ मची थी हाहाकार की अफरातफरी
लोग लगे हुए थे अपनी भागम - भागी में ।
हमने एक बंधु को  थामा, पूछा कहाँ लगी है आग ?
उसने घुरा हमको ऐसे जैसे, पगलाए गये हों आज ।

पैदल ही चल पड़े जिधर थी भीड़ की सरपट चाल
है स्कूटर हमारे पास ,पर उसकी क्या सुनाये बात,
 पेट की चिपकी टंकी में उसका कौन रखे ख्याल
आगे सड़क पे  कुछ गधे खिंच रहे थे एक कार
शर्मा जी देख कर ये घबराये,पैदल होने पे मुस्काए
आगे बढे देखा ,कुछ बालाएं विचार रही थी
छोटे-छोटे कपडे पहन महंगाई का विरोध कार रही थी
हमने कहा ,
ये सरकार थोरी और बढ़ा दो महंगाई
इस छोटे को अति छोटा कर दो

पेट में लगी आग इन नैनों से ही बुझा दो भाई ।।। 

Thursday, September 13, 2012


आज कल सरकारी दफ्तरों के रंग ढंग बड़े ही अलग हैं ।हर तरफ हिंदी दिवस के पर्चे चिपके हुए है ।सुना है की ऊपर से आदेश आया है की हिंदी दिवस पूरी तरह से हिंदी में मनाया जाये :) ।और ये क्या ये महाशय जिनके कंधो पर समारोह की जिम्मेदारी है किसी से अंग्रेजी में बतियाते हुए मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित कर रहे हैं । हो गया न बेडा-गर्क हमारी परम पूजनीय हिंदी जी का ।हिंदी के हर शब्द में जो संस्कृति बसी है भारतवर्ष की उसे कृपया न खोये ।

" निराला , दिनकर ,पन्त ने हिंदी का मान बढाया
अब तो जैसे हिंदी में मंदी का दौर है आया ।
हे भारत-बन्धु निज भाषा को त्याग कर, मत  दूजे को अपनाओ,
हिंदी की कर अवहेलना मत खुद का अपमान कराओ ।"
हे हिंदी ,
तेरी भाषा -विधु की किरणें
होकर विकीर्ण धरती पर ।
मानवता का पथ प्रशस्त,
मनुजार्थ किया जगती पर ।
प्रेम -सलिल से सिंच -सिंच ,
बंधुत्व की लता लहराई ।
भारतीय संस्कृति सुमन की,
सरस सुरभि बिखराई ।
श्रधा सुमन चढ़ाता हूँ ,
तेरे चरणों में,  भाषा महान !
 हे हिंदी!, तुझे कोटि-कोटि प्रणाम ।.....जय हिंद जय हिंदी ।

Wednesday, September 12, 2012

डेवेलोपर बनने का खवाब

फाइल में डिग्री का अंबार  रखता हूँ ।
दिल पे रेफेरेंस का भार  रखता हूँ  ।
हर जगह , जगह है नहीं, खबर आती है ।
फिर भी डेवेलोपर  बनने  का खवाब रखता हूँ ।

प्रोगामिंग  का वृहत ज्ञान रखता हूँ ।
एक अदने से मौके की चाह  रखता हूँ ।
पीकर प्याला  विषरूपी तुकबंदी  का ।
सर पर अपने बेरोजगारी का ताज रखता हूँ ।

अच्छी प्रोफाइलस की तलाश रखता हूँ ।
कंसल्टेनसि  के कॉल की भरमार रखता हूँ ।
क्यों आप(MNC) मौका नहीं देते मुझको ।
मैं आईडिया कई  हजार   रखता हूँ ।।


Thursday, September 6, 2012

नया तौर


राजनीती , शब्द सुनते ही कीचड़ से भरे तालाब का प्रतिबिम्ब आँखों के सामने घूम जाता है ।हमने तो पढ़ा सुना था की कीचड़ से ही कमल निकलता है पर अब मानना मुश्किल हो गया है । अब तो खुलेआम इन नेतागण को गाली देने में न तो कोई हिचक रहा है और ना ही इन्हे सुनने से किसी को शर्म आ रही है ।मुझे लगता है की इन नेताओं ने देश बेचने से पहले अपनी शर्म बेच दी है ।मैं तमाम उन समाजसेविओं और देश हित में सोचने वाले भाइयों से अपील करता हूँ की अब अनशन और धरने से कुछ नहीं होगा ।हमें इन्हे इन्ही को समाज आने वाली भाषा में समझाना होगा । वो कहते हैं ना की " लात के देवता बात से नहीं मानता  है "......इसलिए कहता हूँ

                        " कि जो तौर है दुनिया का    उसी तौर से बोलो
                          कि बहरों का इलाका है      ज़रा जोर से बोलो "