अच्छी कविता ना हो तो हम माफ़ी चाहते हैं ,बढ़ी हुए कीमते सुनकर तबियत स्ट्राईक पे है ।और इस महंगाई में यही इतना जुगाड़ हो पाया है ।आगे अगर महंगाई मैया की थोरी दया होगी तो, हम भी सुकून में होंगे और हमारी कविता भी ।धन्यवाद
आम आदमी की जेब फिर से कट गयी
पेट काट-काटकर की गयी बचत को दीमक चट गयी ।
डीजल और गैस की कीमतों ने फिर हडकंप मचाई है,
बहु ने अपने ससुराल में फिर से आग लगायी है
(एक सुबह बढ़ी हुयी कीमतों के साथ शर्मा जी की सुबह हुयी , बड़े बेदम सी हुयी जान में उन्होंने याद आई की कल रात तो खुद का चेहरा ही देख सोये थे ।पर इससे महंगाई का क्या सम्बन्ध ।खैर !)
हाँ , तो महंगाई से निपटने का कुछ जुगार सोच रहे थे
कोलगेट के बदले नीम के दातुन पर विचार कर रहे थे
दो दिनों से ठीक से नींद की गोद में सोये नहीं थे
कैसा होगा बजट गृहस्ती का इसी सोच में खोये हुए थे ।
महंगाई का सुबह से रटते -रटते जाप
न जाने कब लग गयी हमारी आँख ।
' आग लग गयी ........ आग लग गयी !
ऐसी आ रही थी आवाजें चारो तरफ से
हर तरफ मची थी हाहाकार की अफरातफरी
लोग लगे हुए थे अपनी भागम - भागी में ।
हमने एक बंधु को थामा, पूछा कहाँ लगी है आग ?
उसने घुरा हमको ऐसे जैसे, पगलाए गये हों आज ।
पैदल ही चल पड़े जिधर थी भीड़ की सरपट चाल
है स्कूटर हमारे पास ,पर उसकी क्या सुनाये बात,
पेट की चिपकी टंकी में उसका कौन रखे ख्याल
आगे सड़क पे कुछ गधे खिंच रहे थे एक कार
शर्मा जी देख कर ये घबराये,पैदल होने पे मुस्काए
आगे बढे देखा ,कुछ बालाएं विचार रही थी
छोटे-छोटे कपडे पहन महंगाई का विरोध कार रही थी
हमने कहा ,
ये सरकार थोरी और बढ़ा दो महंगाई
इस छोटे को अति छोटा कर दो
पेट में लगी आग इन नैनों से ही बुझा दो भाई ।।।
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