सोचता हूँ कुछ और,

मन में होता क्षोभ है,
चित रहता न ठौर है।।
मन की बातें
मन में रह जाती हैं ।
आशा की कलियाँ
खिल नहीं पाती हैं।।
ऐसा लगता है मानो
मानव विवश लाचार है ।
उसकी जीवन नैया का
कोई और कर्णधार है ।।
सारे सृष्टि का
नियंत्रण कक्ष कहीं और है ।
जहाँ से होते नियंत्रित
जीव मात्र सर्वत्र हैं ।।
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