Thursday, September 6, 2012

नया तौर


राजनीती , शब्द सुनते ही कीचड़ से भरे तालाब का प्रतिबिम्ब आँखों के सामने घूम जाता है ।हमने तो पढ़ा सुना था की कीचड़ से ही कमल निकलता है पर अब मानना मुश्किल हो गया है । अब तो खुलेआम इन नेतागण को गाली देने में न तो कोई हिचक रहा है और ना ही इन्हे सुनने से किसी को शर्म आ रही है ।मुझे लगता है की इन नेताओं ने देश बेचने से पहले अपनी शर्म बेच दी है ।मैं तमाम उन समाजसेविओं और देश हित में सोचने वाले भाइयों से अपील करता हूँ की अब अनशन और धरने से कुछ नहीं होगा ।हमें इन्हे इन्ही को समाज आने वाली भाषा में समझाना होगा । वो कहते हैं ना की " लात के देवता बात से नहीं मानता  है "......इसलिए कहता हूँ

                        " कि जो तौर है दुनिया का    उसी तौर से बोलो
                          कि बहरों का इलाका है      ज़रा जोर से बोलो "
                       

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